
रेल मंत्रालय ने जैसे ही रेलवे किराए में पैसे-पैसे की बढ़ोतरी का सर्कुलर जारी किया, बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती ने सरकार पर सियासी ब्रेक लगा दिया। उन्होंने सीधे-सीधे कह दिया कि यह फैसला संविधान के कल्याणकारी चरित्र के खिलाफ है।
“महंगाई, गरीबी और बेरोजगारी पहले ही लोगों की कमर तोड़ रही है। अब सरकार रेल टिकट से जेब भी काटना चाहती है?” – मायावती
कितने बढ़े हैं किराए?
रेल मंत्रालय के अनुसार:
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जनरल क्लास में ₹0.50 प्रति किमी
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स्लीपर क्लास में ₹0.01 प्रति किमी
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एसी क्लास में ₹0.02 प्रति किमी की बढ़ोतरी
शायद मंत्रालय भूल गया कि यात्रियों की कमाई ₹0.00 प्रति माह की ओर जा रही है।
“रेलवे अब सेवा नहीं, कंपनी बन गई है” – विपक्ष की आलोचना तेज
मायावती का इशारा साफ था—अब रेलवे आम लोगों की सेवा नहीं, प्रॉफिट मेकिंग यूनिट बन चुकी है। उन्होंने कहा कि यह फैसला विकास नहीं, व्यावसायिकता की तरफ बढ़ता कदम है।
“अब जनता जनरल बोगी में नहीं, जनरल दुख में सफर करेगी।” – एक ट्विटर यूज़र ने लिखा।
BSP की मांग: तुरंत वापसी हो किराया बढ़ोतरी
मायावती ने केंद्र सरकार से इस निर्णय पर पुनर्विचार करने की मांग की है। उनका कहना है कि सरकार को चाहिए कि लोगों की आर्थिक स्थिति के मद्देनज़र फैसले लिए जाएं, न कि बजट संतुलन के चश्मे से।
अब गरीब बोलेगा: “एसी नहीं चाहिए, सी से चल लेंगे – यानी चलो सीटी बजाते हुए“
इस पूरे घटनाक्रम पर सोशल मीडिया पर भी जनता का गुस्सा फूटा।
मीम्स की रेल चल पड़ी:
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“रेलवे बढ़ा किराया, पर यात्रियों को दे रहा केवल लेट लतीफी”
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“बढ़ते किराए पर स्पष्टीकरण: पटरियों पर चलने का नया अनुभव मिलेगा!”
किराया बढ़ा तो वोट घटेंगे?
सरकार का तर्क चाहे जो भी हो, विपक्ष ने इस मुद्दे को जनता से जोड़कर सियासी जमीन पर ज़रूर खड़ा कर दिया है। अगर यही रफ्तार रही, तो अगला चुनावी नारा कुछ ऐसा हो सकता है:
“सस्ता टिकट दो – वरना वोट कटेगा“
आपके विचार?
आप रेलवे किराया बढ़ोतरी पर क्या सोचते हैं?
क्या यह जनता पर बोझ है या विकास की मजबूरी?
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